Here is my latest Hindi Story Bas Dil Ki Suni. Watch the old fashioned storytelling by Anupma Agarwal Chandra.

आज चारु के लिए बहुत ख़ास दिन था , उसके उपन्यास बस दिल की सुनी को  राष्ट्रीय पुरुस्कार से नवाज़ा जा रहा था. कुछ ही समय में वो शानदार जलसा शुरू होने वाला था. चारु ने अपने आप को आईने में देखा

उसके सामने  थी एक आत्मविश्वास  से भरी हुई चालीस के कुछ ऊपर की तेजस्वी  महिला.  वो मुस्कुरा उठी .

बहुत छोटी सी थी तभी से वो किसी की नहीं सुनती थी बस अपने मन  की करती थी. उसकी माँ कहती है की आये दिन चारु की टीचरें उसकी शिकायत करती थी. वो अंग्रेजी की क्लास में सिर्फ कार्टून बनती थी, हिंदी की क्लास में तो  किताब ही नहीं खोलती थी और गणित की कक्षा में तो गाने ही गुनगुनाती रहती थी. माँ बाबूजी की लाख कोशिश के बाद भी चारु का मन पढाई में नहीं लगता था.

थोड़ी बड़ी हुई तो उसे किताबे पढ़ने का शौक लग गया था पर सिर्फ कहानी की किताबें स्कूल की नहीं. मज़े की बात तो ये थी की चारु के परीक्षा में अच्छे खासे नंबर भी आ जाते थे . अब तो सब ने कहना शुरू किया की चारु अगर मन लगाए तो बहुत कुछ कर सकती है बहुत ऊँचे ओहदे तक पहुँच सकती है  पर चारु क्या करे उसे तो सिर्फ नृत्य संगीत कहानी और चित्रकला में ही दिलचस्पी थी. उस पर तुर्रा ये की घर में सब थे  इंजीनियर डॉक्टर आईएएस और प्रोफेसर्स .

और  बड़ी हुई तो उस पर दबाब बढ़ने लगा की कुछ तो करो साइंस ले लो करियर के ऑप्शन ज्यादा मिलेंगे , आगे जा के तुम्हे समझ में आएगा की ज़िन्दगी में खुश रहने के लिए कुछ बनना बहुत ज़रूरी है.   चारु ने कोशिश भी कि  पर उससे हुआ ही नहीं. अगर वो लॉन में बैठ कर पढ़ती थी तो उसका ध्यान सिर्फ तितलियों , फूलों , आकाश , चिड़ियों और पेड़ों पर ही जाता था. अंदर पढ़ती तो उसकी कल्पना हिलोरे भरने लगती थी. और वो किसी और दुनिया कि सैर ही कर रही होती.

अब तक तो लोग भी कह कह कर थकने लगे थे और सबने कहा की हर तरह मौका होने के बाबजूत भी चारु कुछ नहीं कर रही अपनी ज़िन्दगी  नहीं बना पा  रही . बस समय बर्बाद कर रही है . पर चारु तो ठहरी चारु वो न इंजीनियर बनी न डॉक्टर और न ही प्रोफेसर. वो तो बस वहां चली जहाँ दिल ले चला.

कभी पेंटिंग बना कर बेच देती तो कभी अनुवाद करके पैसे कमा लेती और जब कुछ पैसे जमा हो जाते तो घूमने निकल जाती पहंडों पर . किसी की समझ में ही नहीं आता की आखिर चारु चाहती क्या है , क्यों अपनी ज़िन्दगी नहीं बनाती?

सालो साल निकल गए पर चारु नहीं बदली . और अब बात ज़िन्दगी बनाने से शादी कर लो पर आ गयी थी. जो मिलता वो यही कहता की जब कुछ नहीं कर रही हो तो कम से कम शादी तो कर लो. कब शादी होगी कब बच्चा होंगे  . लाख रिश्ते सुझाये गए  पर शादी भी नहीं हुई आखिर एक आज़ाद ,पंखों वाली, मनमौजी  लड़की से कौन शादी करता.

वक़्त गुज़रता गया , चारु अपनी ज़िन्दगी में खुश थी लेकिन बाकी परिवार, नाते रिश्तेदार  सब उससे दुखी.

कब वो चालीस की हो गयी पता ही नहीं चला, और कैसे चलता उसका ज़िन्दगी बिंदास जीने का जज़्बा जो बरक़रार था.

चारु की भांजी की सगाई का मौका था , सारा परिवार , पास के और दूर के रिश्तेदार भी थे. फिर बात चारु ने ज़िन्दगी नहीं बनायीं और शादी भी नहीं की पर आ गयी.

बुआ बोली, चारु न तो तूने करियर बनाया न ही शादी की  कब करेगी? ऐसे कैसे खुश रहेगी ? बुढ़ापे में रोयेगी!

चाची बोली : पहले ही माँ बाप लगाम कस्ते तो लड़की का ये हाल न होता , बेचारी

और तो और ताऊ जी भी कहना लगे ऐसी कटी पतंग सी लड़की का होगा क्या?

जितने मुँह उतनी बातें . खैर सगाई हो गयी सब चले गए . पर इस बार ये बातें चारु को कुछ खटक गयीं , ऐसी खुसुर फुसुर को हवा में उड़ा देने वाली चारु को पहली बार लगा की क्या वाकई में उसने अपनी ज़िन्दगी का कुछ नहीं किया? क्या वो खुश नहीं है? ये उम्र का तकाज़ा था या असलियत का एहसास?

देर रात तक इस ख्याल ने उसे परेशान कर दिया. दिल और दिमाग कुछ इस तरह भर गए थे कि चारु को कलम का सहारा लेना पड़ा. वो सुबह तक लिखती रही . कितनी ही बार उसे लगा जैसे उसके जज़्बातों के लिया शब्द भी कम पड़ रहे हैं . उसे लगा क्या वो सचमुच नाकामयाब है? क्या वो खुश नहीं है? क्या वो सारे लोग जो की बड़ी कंपनियों में नौकरी करते है या आईएएस हैं या शादीशुदा वो खुश है ? अपने अगल बगल के लोगों के बारे में सोचा तो चारु को लगा सरला भाभी तो खुश नहीं, न ही बिट्टो जो की सीईओ है, पंकज भैय्या तो डिप्रेशन की दवा लेते हैं आईएएस की नौकरी कर के, तो खुश आखिर है कौन?

अपनी ओर नज़र डाली तो लगा हाँ मैं तो खुश हूँ, बेहद खुश , लिखते लिखते वो सो गयी और सुबह जब अपनी डायरी पढ़ी तो उन पन्नो में बिखरा हुआ था उपन्यास “बस दिल की सुनी “

चारु ने आखरी बार अपने आप को निहारा और निकल पड़ी,.

उस शानदार आयोजन में जब उसका नाम पुकारा गया और राष्ट्रीय पुरुस्कार लेने मंच कि और बढ़ी तो तालियों कि गड़गड़ाहट से हॉल  गूँज उठा . पहली बार पता चला कि उससे इतने लोग पसंद करते हैं.

सम्मान लेने के बाद प्रेस वालों ने सवालों का तांता लगा दिया , आपको इस कहानी कि प्रेरणा कहाँ से मिली, क्या ये आपके खुद कि जीवन कथा है ? क्या आपको लगता है अब आपकी ज़िन्दगी बन गयी? क्या आप खुश हैं?

चारु ने मुस्कुरा के कहा जब से याद है यही सुना कि मैंने अपनी ज़िन्दगी नहीं बनायीं , मैं खुश कैसे रहूंगी बिना एक ओहदे, एक शादी और कुछ बच्चों के? सुनते सुनते सुनते एक रात मुझे लगा कि शायद सच में मैंने अपनी ज़िन्दगी नहीं बनायीं, फिर बहुत सोचा कि अब मैं क्या बनाऊं , कैसे बनाऊं क्या करूँ इस ज़िन्दगी का और जब कुछ समझ नहीं आया तो मैंने अपनी  ज़िन्दगी कि कहानी बना दी. यही है उपन्यास बस दिल की सुनी  और हाँ मैं खुश हूँ हमेशा खुश थी क्यूनि मैंने अपने दिल की सुनी. क्या आप लोग खुश हैं खुद से? कह कर उसने हाथ जोड़ दिए.

इस बार सबसे तेज़ तालियां उसके माँ बाबूजी कि थीं .

कहानी बस दिल की सुनी

लेखिका अनुपमा अग्रवाल चंद्रा

लेखिका और प्रसन्नता विशेषज्ञ

This story is original copyright content of Anupma Agarwal Chandra . You may quote with due credits. #Anupma #KahanibaazAnupma #HindiFiction #HindiStory

You will also love

Grihani no.611

My Podcast on Happiness

There is nobody like Amrita Pritam, Audio Stories

True story of Happiness

Who Am I?

You May Also Like

First anniversary of Make Happy Foundation, a year full of spreading happiness! Celebrations and Highlights of the one year Journey.

Its 8th of March  2019 and we at Make Happy Foundation have…

“Affectionately Yours” Letters full of Love and Memories by Radio Bebaak Parindey!

” Affectionately Yours” Letters full of Love and Memories. Radio Bebaak Parindey…