Here is a powerful poem in Daily Happylogues, on this women’s day. Written by Anupma and read in her own voice. Women you are going to love it!!

You may also like Happiness and Women

Here is the transcript in Hindi :



गीत एकअपने लिए ही
गुनगुनाना चाहती हूँ मैं
एक शाम बस खुद के साथ
गुजारना चाहती हूँ मैं।

कुछ खो सी हूँ बे-हिसाब
उम्मीदों की भीड़ में
अपनी ही नज़रों से खुद को
पहचानना चाहती हूँ मैं।

मत भटकाओ इस कदर
जिम्मेदारियों के जंगल में मुझे
कुछ बेफिक्र लम्हें फुर्सत में
उड़ाना चाहती हूँ मैँ ।

ना दो झुकी नज़रों और ढली
मुस्कान की खूबसूरती का नाम
बेबाक नज़रों से नज़रें मिला के
खिलखिलाना चाहती हूँ मैं

सही गलत, करो मत करो के
दायरों में समेट दिया है मुझे
कैसे कहूँ आसमान से भी
आगे निकल जाना चाहती हूँ मैं

नहीं चाहिए किसी से भी
पहचान के सूरज चाँद औ तारे
अब अपने ही वज़ूद की रौशनी
में जगमगाना चाहती हूँ मैं

सब करना चाहते हैं तय मेरी
ज़िन्दगी का रूख़
कोई मुझसे भी तो पूछे
क्या चाहती हूँ मैं

गीत एकअपने लिए ही
गुनगुनाना चाहती हूँ मैं
एक शाम बस खुद के साथ
गुजारना चाहती हूँ मैं।

You May Also Like

Rupsa winner of Super Dancer Chapter 3 proves scarcity nurtures creativity and excellence.

I was just going through the profile of Rupsa winner of Super…

Daily Happylogues 100 Happy Days , Day 15 , Play with kids around you!

Daily Happylogues 100 Happy Days, Day 15, in the happiness practice play…